इरुला आदिवासी लड़की बी श्रीमथि ने रचा इतिहास, अब अपने ज्ञान से दुनिया को करेगी रोगमुक्त

जब बी. श्रीमथि को MBBS कोर्स के लिए तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला, तो उन्होंने इतिहास रच दिया, क्योंकि वह अपने इरुला आदिवासी समुदाय से डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल की पढ़ाई करने वाली पहली महिला हैं।

कहते हैं इस दुनिया में अगर भगवान के बाद किसी का सम्मान सबसे ज्यादा है तो वह डॉक्टर का है। जो हमें मौत के मुंह से भी कई बार खींच लाता है। हालांकि, एक बेहतर डॉक्टर बनना इतना आसान नहीं है, पहले कड़े कंपटिशन को पार कर के देश के टॉप मेडिकल कॉलेजों में अपनी जगह सुनिश्चित करो, इसके बाद जब एडमिशन की बात आए तो मोटे फीस का इंतजाम करो। इन सबके बीच देश में रहने वाला एक बड़ा तबका आज भी ऐसा है जिनके पूर के पूरे समाज से कोई डॉक्टर नहीं है। इरुला समाज भी कल तक ऐसा ही था। लेकिन अब ऐसा नहीं रहेगा, क्योंकि बी. श्रीमथि (B Srimathi) ने तमाम कठिनाइयों को पार कर अब तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज के MBBS कोर्स में एडमिशन ले लिया है।

सरकारी स्कूल से MBBS तक का सफर 

दरअसल, जब बी. श्रीमथि को MBBS कोर्स के लिए तिरुनेलवेली गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिला, तो उन्होंने इतिहास रच दिया, क्योंकि वह अपने इरुला आदिवासी समुदाय से डॉक्टर बनने के लिए मेडिकल की पढ़ाई करने वाली पहली महिला हैं। बी. श्रीमथि ने अपनी इस उपलब्धि पर कहा कि उनकी यह सफलता समुदाय के अन्य सदस्यों के लिए प्रेरणा होगी जो अपने पसंद की नौकरियों और व्यापार करने का सपना देख रहे हैं। मीडिया से बात करते हुए, 20 साल की बी. श्रीमथि, जिनके पिता एक शिक्षक हैं और मां एक बागान कार्यकर्ता हैं, ने कहा कि मैं प्राथमिक विद्यालय में पढ़ी लिखी हूं, मैं बचपन से ही एक डॉक्टर बनना चाहती थी। मैंने अपने सपनों का पीछा किया, उसके लिए कड़ी मेहनत की और आखिरकार मैं यहां हूं।

बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं श्रीमथि

तमिलनाडु के नीलगिरी जिले की इरुला समुदाय की लड़की ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि MBBS करने के बाद वह बाल रोग विशेषज्ञ बनना चाहती हैं। बी श्रीमथि ने कहा कि वह नीलगिरी जिले के आदिवासी छात्राओं के साथ-साथ राज्य भर के आदिवासी समुदायों के छात्रों के लिए एक रोल मॉडल बनना चाहती हैं। श्रीमथि ने कहा कि वित्तीय अस्थिरता और नीतियों के बारे में जागरूकता की कमी आदिवासी समुदायों के छात्रों के डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, वकील और पत्रकार बनने के अपने सपनों को पूरा करने में विफल होने का कारण है।

फिल्म जय भीम में इसी समाज को फिल्माया गया था

मानव-पशु संघर्ष और जंगली हाथियों और अन्य जानवरों के रिहायशी इलाकों में घुसने के कई उदाहरणों के साथ, विशेष रूप से आदिवासी बेल्ट के छात्र कक्षाओं में भाग लेने में सक्षम नहीं हैं। पुरस्कार विजेता फिल्म जय भीम में इरुला समुदाय और उसकी दुर्दशा को विस्तार से चित्रित किया गया है, जिसमें तमिल सुपरस्टार सूर्या ने सक्रिय वकील से जज बने जस्टिस चंद्रू की भूमिका निभाई थी।

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