राजस्थान में गहलोत का खौफ, अब मोदी खुद उतरे मैदान में, बने राजस्थान चुनाव के प्रभारी

वसुंधरा को दरकिनार करना महंगा पड़ सकता है भाजपा को, यहां गहलोत को टक्कर वसुंधरा ही दे सकती है

इम्तियाज अहमद

जोधपुर। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सामने भाजपा के पास कोई मजबूत चेहरा उभर नहीं पाया है भाजपा की लाख कोशिशों के बावजूद मुख्यमंत्री गहलोत का तोड़ नहीं ला पाए हैं मुख्यमंत्री की कार्यशैली और जनहित में लाई गई योजनाएं जनता में काफी चर्चित है साथ ही राजस्थान में गहलोत के सामने सभी नेता बौने हैं इसी घबराहट से राजस्थान में मोदी के नाम से चुनाव लड़ने की बात सामने आ रही है भाजपा ने अपने शीर्ष चार नेताओं को 4 प्रदेशों की कमान सौंपने का फैसला किया है इसके तहत पीएम मोदी को राजस्थान, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मध्य प्रदेश, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को छत्तीसगढ़ और महामंत्री बीएल संतोष को तेलंगाना की कमान सौंपी है इन चार राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं इस फैसले के बाद प्रदेश के सभी 28 सांसदों को 8 अगस्त को दिल्ली बुलाया गया है ऐसा पहली बार होगा कि जब प्रधानमंत्री किसी राज्य में सीधे चुनाव रणनीति देखेंगे गहलोत के सामने भाजपा कोई विकल्प नहीं ला पाई है इसी के चलते नरेंद्र मोदी को खुद कमान हाथ में लेनी पड़ी है इस कदम से साफ दिखाई देता है कि गहलोत का जादू राजस्थान में अभी भी बरकरार है और भाजपा का कोई नया चेहरा गहलोत को टक्कर नहीं दे सकता है इसी के चलते पीएम मोदी खुद राजस्थान में संभालेंगे मोर्चा।

विधानसभा चुनावों में नही चलता है मोदी का जादू

राजस्थान की जनता कांग्रेस में अगर किसी को चाहती है तो वो है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, वही भाजपा में अगर कोई गहलोत के टक्कर का चेहरा है तो वो है वसुंधरा राजे, लेकिन काफी मशक्कत के बाद भी वसुंधरा राजे को कमान नहीं दी गई है चुनाव बहुत नजदीक है ऐसे में वसुंधरा राजे को दरकिनार कर राजस्थान में चुनाव लड़ना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा क्योंकि 2003 के बाद वसुंधरा राजे एवं अशोक गहलोत के अलावा मुख्यमंत्री के रूप में कोई भी चेहरा उभर नहीं पाया है अब ऐसे में वसुंधरा राजे को दरकिनार करके भाजपा के लिए सत्ता हासिल करना दूर की कौड़ी साबित होगी।

वसुंधरा का प्रभाव अभी भी पूरे प्रदेश में है, कार्यकर्ताओं पर जबरदस्त पकड़

गहलोत को टक्कर देने के लिए वसुंधरा की जगह मोदी आ रहे हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर वसुंधरा काफी मजबूत है प्रदेश की 200 विधानसभा सीटों में से लगभग 60 से 70 सीटों पर वसुंधरा राजे का जबरदस्त प्रभाव है एवं वह भाजपा के साथ-साथ वसुंधरा राजे के समर्थक भी है कई जिलों के पदाधिकारी वसुंधरा के साथ अभी भी खड़े हैं इन सब को दरकिनार कर वसुंधरा राजे को कमान नहीं देना भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है वसुंधरा राजे के साथ प्रदेश की जनता खड़ी दिखाई दे रही है भाजपा में वसुंधरा के अलावा कोई नया चेहरा नहीं है नरेंद्र मोदी केंद्रीय स्तर पर मजबूत है उन्हे प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं इसीलिए उनको राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बंपर जीत मिलती है लेकिन विधानसभा चुनाव में मोदी का जलवा नहीं चल पाता है क्योंकि अशोक गहलोत खुद के बड़े कद के नेता हैं राजस्थान भाजपा में वसुंधरा के अलावा कोई भी नेता को जनता पसंद नहीं करती है भाजपा का यह फैसला कही उल्टा साबित ना हो जाए हालाकि इसके लिए हमें आने वाले चुनाव तक इंतजार करना पड़ेगा लेकिन फिर भी वसुंधरा राजे को दरकिनार कर चुनाव लड़ना इतना आसान नहीं होगा।

पिछले 7 वर्षो में भी भाजपा नही ला पाई वसुंधरा का तोड़

भाजपा पिछले लगभग 7 वर्षों से राजस्थान में कोई नया चेहरा ढूंढ रही थी पहले केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम चर्चा में आया था लेकिन कुछ दिनों बाद वह चर्चा में नहीं रहे, उसके बाद सतीश पूनिया, राजेंद्र राठौड़, सीपी जोशी इन सभी को नए चेहरे के रूप में पेश करने की कोशिश भी की गई लेकिन भाजपा को सफलता नहीं मिली और वसुंधरा राजे को दरकिनार करने के सारे रास्ते बंद हो गए और जब कोई नया चेहरा नहीं मिला तो अब मोदी को खुद कमान अपने हाथों में लेनी पड़ी है लेकिन पीएम मोदी को नही पता ये गहलोत और राजे का राजस्थान है यहां स्थानीय मुद्दे और स्थानीय संगठन हावी रहता है यहां की जनता स्थानीय नेताओं को ज्यादा महत्व देती है।