नई दिल्ली। किसी भी आरोपी के घर पर ताबड़तोड़ बुलडोजर चलाने का सरकारों का निर्णय सही है या गलत इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है सरकार चाहे किसी भी दल की हो एक ट्रेंड के बाद सभी ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। कहीं कहीं कांग्रेस सरकारों ने एवं अधिकतर भाजपा सरकारों ने बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। राज्य सरकारों का तर्क है कि उन्होंने कानून को हाथ में लेकर किसी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की है बल्कि उन्हें घरों को गिराया है जो अवैध रूप से बने हुए थे। इन अवैध मकानों को नगर पालिका नियमों के तहत गिराया गया है। अब सवाल यह उठता है कि इस तरह के अवैध मकान बनने क्यों दिए गए, अफसर ने ऐसे मकान बनने के लिए कितनी घूस खाई हैं एवं जब वह मकान बन रहे थे ऐसे में तत्कालीन अफसर के ऊपर भी कार्यवाही होनी चाहिए।
बहरहाल सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल कोई निर्णय तो नहीं सुनाया है लेकिन यह जरूर कहा है कि कोई आरोपी भले ही दोषी हो तो भी उसका मकान गिराया नहीं जा सकता। कोर्ट ने संबंधित राजनीतिक दलों और उनकी सरकार को नोटिस देकर कहा है कि वह अपने-अपने तर्क दे ताकि इस बारे में एक नई गाइडलाइन जारी की जा सके। वैसे कुछ लोग इसे किसी वर्ग विशेष से जोड़कर भी देख रहे हैं लेकिन ऐसा स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि दूसरे वर्ग के लोगों के घरों पर भी बुलडोजर चलाए गए हैं। लेकिन बुलडोजर कार्यवाही कितनी सही है और कितनी गलत कानूनी तौर पर इसका कोई आधार भी है या नहीं यह तो अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा। लेकिन कुछ पार्टियों और लोगो का यह तर्क है कि एक अपराध की दो सजा नहीं हो सकती।
दो सजा से मतलब है कि एक तो उसके खिलाफ पुलिस और कोर्ट कानून के हिसाब से कार्यवाही चलती है दूसरी मकान गिरा कर सजा दी जाती है बहुत हद तक यह तर्क सही लगता है एक अपराध के लिए दो अलग-अलग सजा एवं मकान गिराकर उनके परिवार और बच्चों को भी सजा मिलती है अगर कोर्ट कहे कि इस आरोपी का मकान अवैध है तो उसे गिरा दिया जाए तब यह कार्यवाही सही कही जा सकती है सरकार खुद सजा देने लगेगी तो फिर कोर्ट क्या करेगा।