मिलावटी खाद्य सामग्री बेचने पर 2 माह से आजीवन कारावास तक और 50 हजार से 10 लाख तक जुर्माना
रायपुर। बाजारों में बिक रही खाने-पीने की मिलावटी और असुरक्षित चीजों की जांच के नाम पर बड़ा खेल चल रहा है। वैसे तो खाद्य अधिनियम के तहत मिलावटी और असुरक्षित चीजें बेचने वालों के खिलाफ 50 हजार से 10 लाख तक जुर्माना और 2 माह से आजीवन कारावास तक की सजा का कानून है।
किसी की मौत होने पर आजीवन कारावास तक की सजा दी जा सकती है। लेकिन पिछले पांच साल में किसी भी मिलावटी कारोबारी पर तगड़ा जुर्माना नहीं किया और न ही सजा दी गई। रायपुर में पिछले पांच साल में केवल 219 केस ही पेश किए गए। इसमें भी अधिकतम 50 हजार ही जुर्माना हुआ है।
ऐसा क्यों? इसकी पड़ताल करने पर चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि जिस कानून के तहत भारी जुर्माना और जेल हो सकती है, उसके तहत सैंपल ही नहीं लिए जा रहे हैं। फूड इंस्पेक्टरों को खाने-पीने की मिलावटी चीजों की जांच के लिए दो तरह से सैंपल लेने का अधिकार है। लीगल यानी कानूनी और सर्विलांस यानी निगरानी सैंपल।
पैकेट में बिकने वाली चीजें पहले से टेस्टेड, फिर भी उनकी जांच ज्यादा
बाजार में पैकेट में बिकने वाली खाने-पीने की चीजें पहले से टेस्टेड होती है। फैक्ट्री में एक निर्धारित मापदंडों के अनुसार उन्हें बनाकर पैक किया जाता है। ऐसी दशा में उन चीजों के मिलावट और असुरक्षित होने के चांस कम होते हैं। उसके बाद भी फूड विभाग पैकेट वाले सैंपलों की जांच ज्यादा करता है।
रायपुर में ही पिछले पांच साल के दौरान 219 सैंपल में 128 पैकेट में पैक खाने-पीने की चीजें जांची गई, जबकि 91 सैंपल खुले में बिकने वाली खाद्य सामग्री थी। इस तरह एक ओर जहां कानूनी और निगरानी सैंपल के नाम पर खेल चल रहा है वहीं दूसरी ओर पैकेजिंग वाली चीजों की ज्यादा जांच कर केवल खानापूर्ति की जा रही है।
निगरानी सैंपल फेल हुए तो कोई सजा नहीं
कानूनी नियमों के तहत लिए गए खाने-पीने की चीजों के सैंपल जांच में मिलावटी या असुरक्षित निकलने पर 50 हजार से 10 लाख तक जुर्माना वसूला जाता है। खाद्य सामग्री में असुरक्षित तत्व मिले आजीवन कारावास की सजा दी जा सकती है। वहीं दूसरी ओर खाने-पीने की चीजों के सर्विलांस यानी निगरानी वाले सैंपल लेकर जांच करने पर उसमें मिलावट या असुरक्षित तत्व मिलने पर सजा तो दूर जुर्माना तक लेने का नियम नहीं है।
इस तरह की जांच में जिन चीजों के सैंपल में मिलावट मिलती है, उसे फूड इंस्पेक्टर नष्ट करवाकर कारोबारी को चेतावनी देकर छोड़ सकते हैं। बस इसी नियम का फायदा उठाया जा रहा है। कानूनी सैंपल के साथ खानापूर्ति के लिए निगरानी नियम के तहत सैंपल लेकर कार्रवाई दिखाई जा रही हैं। फूड इंस्पेक्टरों के लिए कोई नियम नहीं है वे जितना चाहे उतना कानूनी और निगरानी सैंपल ले सकते हैं। इस वजह से कई बार किसी महीने जितने सैंपल कानूनी लिए जा रहे है कि उतने ही निगरानी सैंपल लिए जाते हैं। इस तरह वे कार्रवाई दिखाकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं। यही वजह है कि राज्य के अन्य शहरों में तो दूर रायपुर में जहां खुद फूड टेस्ट लेबोरेटरी है वहां भी न तो तगड़ा जुर्माना किया जा रहा है और न ही ऐसा केस बनाया जा रहा जिससे मिलावटखोरों को सजा दी जा सके।
लेबोरेट्री जांच में फेल होने पर ऐसे होती है कार्यवाही
फूड विभाग की लेबोरेट्री में खाद्य विश्लेषक जांच करते हैं। लीगल यानी कानूनी तौर पर लिया गया सैंपल फेल होने के बाद उसकी रिपोर्ट और जब्त सैंपल चाहे वह अमानक हो, मिलावटी हो या असुरक्षित हो, उसे एडीएम एवं सीजीएम में केस बनाकर पेश किया जाता है। वहीं से ही फैसला सुनाया जाता है।
नोट- इसमें लीगल सैंपल कुछ महीनों में निगरानी सैंपल के बराबर लिए गए हैं। जो लीगल सैंपल लिए गए हैं, उसमें भी आधे से ज्यादा पैकेट वाले सैंपल है। जो पहले से टेस्टेड होते हैं। ये आंकड़े पिछले साल के हैं।