जेडीए द्वारा पत्रकारों को दिए गए प्लॉट को नियमानुसार अलॉट नही करने का आरोप लगा, पत्रकारों में रोष व्याप्त

जोधपुर। 7 अक्टूबर पत्रकारों के लिए एक विशेष दिन था और जिसका सभी को बेसब्री से इंतजार भी था और वह इंतजार खत्म हुआ एवं शनिवार को प्लोटो के लिए लॉटरी निकाली गई लॉटरी निकलने के बाद कई मुख्य धारा में काम करने वाले पत्रकारों के प्लॉट नहीं खुलने से पत्रकारों में रोष व्याप्त हो गया जानकारी के अनुसार ऐसे कई पत्रकार है जो कई बड़े बैनर में काम कर रहे हैं एवं लगातार पत्रकारिता में सक्रिय भी है लॉटरी में नाम नहीं आने से सवाल खड़े हो गए हैं।

ये रही कमियां

लॉटरी से पहले होनी चाहिए स्क्रूटनिंग

जेडीए ने आवेदन लेने के बाद आनन फानन में लॉटरी कर दी और जो भी फार्म आए उन्ही से ही लॉटरी कर डाली जबकि जो आवेदन आए थे उनकी पहले स्क्रूटनिंग की जानी चाहिए थी 8 आवेदनों को रद्द भी किया गया था लेकिन वो ऐसे थे जिन्होंने एक ही परिवार से 1 से ज्यादा आवेदन कर दिए थे लेकिन ऐसे अनुभव प्रमाण पत्रों की जांच नही की गई जो फर्जी थे या वो समाचार पत्र प्रकाशित ही नही होते है ऐसे व्यक्तियों के नाम लॉटरी में आने से पहले पंक्ति के वास्तविक पत्रकार पीछे रह गए थे अब सवाल ये उठ रहा है कि आवेदन की जांच के लिए किसी पत्रकार को साथ क्यों नही लिया गया था जबकि किसी पत्रकार को जांच में शामिल नहीं किया गया जिसका परिणाम ये निकला कि जो पत्रकारिता नही करते उनको प्लॉट मिल गया और जो वर्षो से रात दिन मेहनत करके पत्रकारिता कर रहे है वो सरकार की इस योजना से वंचित रह गए।

जिनके नाम लॉटरी में खुले उसमे भी अनियमितताएं पाई गई

जिनके नाम लॉटरी में खुले है उनमें साइज को लेकर भी नाराजगी दिखाई दी है जिसमे किसी को 103 स्केवयर मीटर का है और किसी के डबल से भी ज्यादा 461 स्कैयर मीटर का है जबकि सरकार ने 167 साइज निर्धारित कर रखी थी ज्यादा हो तो कोई बात नही साइज से कम मिलना अन्याय है अब किसी को तो 103 साइज का प्लॉट मिला और किसी को 461 का इसमें चार गुना का फर्क दिखाई दिया जो फर्जी तरीके से प्रमाण पत्र लगाकर जिन्होंने प्लॉट लिए और जिन्होंने जीवन भर पत्रकारिता की वो सब एक बराबर हो गए।

कुछ उदाहरण देखे जिससे समझ में आ जाएगा सब कुछ

1.मो उमर जो की अधिस्वीकृत पत्रकार है और इनकी उम्र लगभग 70 के आसपास है इनका समाचार पत्र 25 वर्षो से अधिक पुराना है लगातार प्रकाशित होता है, और राजस्थान सरकार से विज्ञापनों के लिए मान्यता प्राप्त भी है साथ ही वरिष्ठ पत्रकार की श्रेणी में भी आते है इनको पत्रकारिता के क्षेत्र की सरकार से पेंशन भीं आती है इनका नाम बाकी रहना चिंताजनक है और आप खुद ही सोच सकते है ये पात्र है कि नही।

2. चंद्र शेखर व्यास, जो कि कई वर्षो से इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया में सक्रिय है साथ ही वर्तमान में प्रदेश का जाना पहचाना चैनल न्यूज 18 में कार्यरत है फील्ड की पत्रकारिता करते है लेकिन इनका नाम भी लॉटरी में नही आया और वंचित रह गए।

3.अरविंद राजपुरोहित, ये दैनिक भास्कर डिजिटल में कार्यरत है और दिन भर खबरों में व्यस्त रहते है भास्कर जैसे डिजिटल सेक्शन में कार्य करना जो कि अपने आप में ही उपलब्धि है पूर्णतया श्रमजीवी पत्रकार है लेकिन ऐसे पत्रकार का नाम भी लॉटरी से वंचित रह गया जो की निराशाजनक है।

4.मनोज शर्मा, स्वयं का दैनिक समाचार पत्र है अधिस्वीकृत पत्रकार भी है साथ ही समाचार पत्र भी लगातार प्रकाशित हो रहा है वही समाचार पत्र राज्य सरकार से विज्ञापनों के लिए मान्यता प्राप्त भी है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी लॉटरी में नाम नही है।

साथ ही रमेश सारस्वत, गुलाम मो, गिरीश दाधीच, मो आशिक, पाबूराम सरगरा,श्याम सांगा और भी ऐसे कई 30 से अधिक पत्रकार है जो हर तरीके से पात्र है लेकिन उनका नाम लॉटरी में है ही नही इसका मुख्य कारण यही है कि पहले आवेदनों की जांच नही की गई थी और सभी को लॉटरी में ले लिया गया था हम लॉटरी प्रक्रिया पर सवाल नही उठा रहे है कंप्यूटर को तो जितने आप नाम देंगे वो तो वही से चयन करके देगा उसको नही पता कौन फर्जी है कौन सही है उसका काम चयन करना था वो उसने कर लिया लेकिन अगर उसको सही लोगो की सूची दी जाती तो शायद चयन भी सही होता।

पत्रकार संगठनों ने भी आवाज नही उठाई

जोधपुर में कई पत्रकार संघठन सक्रिय है लेकिन इस सही बात के लिए तो कोई संगठन ने इन पत्रकारों की कोई मदद नहीं की, इस प्रक्रिया पर किसी ने सवाल नही उठाए किसी ने इन पत्रकारों की आवाज मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंचाई हम जो सही है जिनको प्लॉट मिले है उन पर सवाल नही उठा रहे है लेकिन जो मुख्यधारा के पत्रकार है वो प्लॉट से वंचित नही रहने चाहिए।